परेशानी से हमें अब तो बचाता आ रहा घूँघट।
बिना कारण हमें सबसे चुराता आ रहा घूँघट।
जो देखे हैं, बुरी नजरों सें, पापी लोग होते हैं।
ढकें चहरा बुरी नजरो सें छुपाता आ रहा घूँघट।
हया हमको लगें,जब हाय छुपाता हकीकत को।
सही मे लाज के पहरे लगाता आ रहा घूँघट।
ये भी सच है,जमाने की बुरी नजरो से है रोके।
सभी कलुषित निगाहों से बचाता आ रहा घूँघट।
जमाना दे रहा ठोकर बचे कैसे अजी औरत।
बड़ी बेबस हुई औरत,लजाता आ रहा घूँघट।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, चंडीगढ़