जिसकी यादों में मैं खोया रहता हूँ,
उसकी यादों को मैं आज बताता हूँ l
उसकी जुल्फों मे काले बादल है,
जिसके साये में मैं भीग जाता हूँ l
उसके माथे पे सूरज की बिंदिया है,
जिसकी आभा से मैं जगमगाता हूँ l
उसके बदन पे चंदन की ख़ुशबू है,
जिसकी ख़ुशबू से मैं महक जाता हूँ l
उसकी आँखो में एक मधुशाला है,
जिसकी साकी से मैं बहक जाता हूँ l
उसकी ओठों पे सबनम की बूदें है,
जिसकी बूदों से मैं प्यास बुझाता हूँ l
उसकी हाथों में मानो एक जादू है,
जिसके छूते ही मरहम बन जाता हूँ l
जिसकी यादों में मैं खोया रहता हूँ,
उसकी यादों को मैं आज बताता हूँ l
– जितेंद्र कुमार, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश