मनोरंजन

ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

परेशानी से हमें अब तो बचाता आ रहा घूँघट।

बिना कारण हमें सबसे चुराता आ रहा घूँघट।

 

जो देखे हैं, बुरी नजरों सें, पापी लोग होते हैं।

ढकें चहरा बुरी नजरो सें छुपाता आ रहा घूँघट।

 

हया हमको लगें,जब हाय छुपाता हकीकत को।

सही मे लाज के पहरे लगाता आ रहा घूँघट।

 

ये भी सच है,जमाने की बुरी नजरो से है रोके।

सभी कलुषित निगाहों से बचाता आ रहा घूँघट।

 

जमाना दे रहा ठोकर बचे कैसे अजी औरत।

बड़ी बेबस हुई औरत,लजाता आ रहा घूँघट।

– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, चंडीगढ़

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