आ लउटि चली, फिर बचपन मां
आ लउटि चली फिर बचपन मां
उन नुक्कड़ उन चौबारन मां
उन गांवन की गलियन मां,
आ लउटि__
अम्मा की सोंधी रोटिन मां
बप्पा की खरी औ खोटिन मां
उन आमन के बिरवन मां
मलिया की तीखी चितवन मां
आ लउटि —
गुल्ली डंडा छुपन छुपाई,
गुप छुप खावैं दूधु मलाई,
जाड़े मा तफ्ता जब बारैं
खीचम खांची करैं रजाई,
होरी कै हुड़दंगन मां,
अबीर,गुलाल औ रगंन मां,
आ लउटि —
राखी भाई दूज जब आवैं
मिलि कै सबु त्योहार मनावैं
महक उठी पकवानन मां,
आ लउटि,
घुसैं कीच मा पकरै जावैं,
कानु पकरि कै अम्मा लावैं,
रगरि कै बट्टा फिरि नहवावैं,
धूम मचै खलिहानन मां
आ लउटि —
का स्वादु रहा तब सागन मां
तुलसी क्या बिरवा आंगन मां
गुड्डा अउ गुड़िया क्या भियांव
तय हुवा रहा तब फागुन मां
आ लउटि —
– सन्तोषी दीक्षित देहरादून, उत्तराखंड