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प्रेमगीत – अर्चना उर्वशी

कुछ राग बुने तुमने, कुछ रंग चुने हमने,

हम दोनों की पलकों पे, कुछ स्वप्न लगे पलने।

 

चुपचाप चल रही थी, एक शाम वो दीवनी,

सूरज ने अंक में भर, दी प्रेम की निशानी।

संध्या हुई सुहागिन! पहने प्रणय के गहने,

कुछ अर्थ बुने तुमने, कुछ छंद चुने हमने।

हम दोनों की पलकों पे कुछ स्वप्न लगे पलने।

 

तट भींगा,रेत भींजी औ, शंख-सिपियां भी,

चंदा विहंस के बोला और उसकी चंदनियां भी।

मुस्का उठे सितारे, लहरें लगीं मचलने,

कुछ आस बुने तुमने, अहसास चुने हमने।

हम दोनों की पलकों पे कुछ स्वप्न लगे पलने।

 

सरगम की धुन पे थिरके है, राग -रागिनी भी,

सोलह सिंगार करके, बैठी है दामिनी भी,

हिय में प्रणय की ऊष्मा, हौले लगी पिघलने,

कुछ भाव बुने तुमने, कुछ गीत चुने हमने।

कुछ राग बुने तुमने, कुछ रंग चुने हमने।

हम दोनों की पलकों पे कुछ स्वप्न लगे पलने।

-अर्चना उर्वशी, मुंबई , महाराष्ट्र

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