विदेशी संस्कृति के विरोध में,
स्वदेशी का विरोध कर डाला ।
गाय गला मिलन दिवस को,
काऊ हग डे बना डाला ।
विदेशी व्यवहार बदलने का ,
क्या गजब स्वदेशी फंडा है।
कोट पैंट और टाई पहने,
पर हाथ में विरोध का झंडा है।
गुड़ खाओ खूब मजे मजे में,
और गुलगुले से परहेज़ करो।
खान पान सब अंग्रेज़ो वाला,
पर अंग्रेजियत से भाई डरो।
चिन्ता करो गऊ माता की,
उनको अपने घर में पालो।
खुद बनकर शहरी बाबू,
केवल गेंद मत उछालो ।
कौन है कितना गले मिलता,
यह बताने की कोई बात नहीं।
कथनी करनी भिन्न जब,
बातें होती आत्मसात नहीं ।
मिलन दिवस के प्रणेता बाबू,
रोज रोज गौशाला जाओ।
भूख से तड़पते गोवंश को,
पेट भर भोजन कराओ।
जो कृशकाय बीमार अपाहिज़,
उनके घाव पर मरहम लगाओ।
बातों से केवल बातवीर बन,
न जनता को प्यारे भरमाओ।
है दुर्दशा देश में जो गायों की,
वह ढंकी छिपी कोई बात नहीं।
भूख प्यास से तड़प रहीं,
सड़कों पर कम आघात नहीं।
धन्य देश के गो पालक हैं,
धन्य है देश के गरीब किसान।
नुकसान झेलकर खेतों में,
बने हैं अबोलो के भगवान।
केवल दिवस मनाने से भाई,
न होगा गोवंश जीवन आसान।
चारा पानी नित भर पेट मिले,
सिर पर मिले उन्हें वितान ।।
– हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश