देख आकर्षक स्वर्ण मृग को,
सिया का मन ललचाया,
ला दो प्रभु मुझे यह मृग,
समझ न पाई ,रावण की माया,
सस्नेह आग्रह सुनकर सिया का
रघुवीर मन मन मुस्कुराए,
लक्ष्मण बेचैन देख रहे,
कैसे जानकी को समझाए?
यह है कोई मायावी राक्षस,
आकुल वैदेही को कैसे बताए?
विधान के ज्ञाता प्रभु राम,
धनुष बाण साधे,चलते जाए
– रेखा मित्तल, सेक्टर-43 , चण्डीगढ़