मनोरंजन

ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

गम की बदली छायी कैसे?

मायूसी  अब  आई  कैसे?

 

प्रिय लगता है अब मुझको तू,

चाहत  अभी लगाई कैसे?

 

कैसे झाँकू आँखो मे अब,

तुमने यूँ  बिसराई कैसे?

 

दुनियाँ  पूछे  ढेरो बातें।

हँसकर आज लजाई कैसे?

 

जार जार रोता दिल मेरा,

गम मे वक्त  गँवाई  कैसे?

 

प्रेम  भरी  हो  बातें  यारा,

फिर कर लिये लड़ाई कैसे।

 

लोग न समझे प्रीत पराई।

जग  ने रीत  बनाई कैसे?

 

आँसू बहते आँखो मे अब।

ऐसे  में  मुस्काई   कैसे?

– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली चण्डीगढ़

Related posts

प्रदूषण – झरना माथुर

newsadmin

विश्वकवि गोस्वामी तुलसीदास – डॉ. हरि प्रसाद दुबे

newsadmin

भक्ति का मजाक, गरबे में बढ़ती अश्लीलता – मुकेश कबीर

newsadmin

Leave a Comment