गम की बदली छायी कैसे?
मायूसी अब आई कैसे?
प्रिय लगता है अब मुझको तू,
चाहत अभी लगाई कैसे?
कैसे झाँकू आँखो मे अब,
तुमने यूँ बिसराई कैसे?
दुनियाँ पूछे ढेरो बातें।
हँसकर आज लजाई कैसे?
जार जार रोता दिल मेरा,
गम मे वक्त गँवाई कैसे?
प्रेम भरी हो बातें यारा,
फिर कर लिये लड़ाई कैसे।
लोग न समझे प्रीत पराई।
जग ने रीत बनाई कैसे?
आँसू बहते आँखो मे अब।
ऐसे में मुस्काई कैसे?
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली चण्डीगढ़