आरंभ कर बार-बार अभ्यास,
लड़ाई का आगाज हो चुकी है।
ज्ञान महायुद्ध में जीतने के लिए,
परीक्षा की तैयारी हो चुकी है ?
जीवन कुरुक्षेत्र में उतर अकेला,
कृष्ण सदृश स्वयं को उपदेश दो।
भ्रम और पराजय कौरव दलों की,
धनुर्धारी अर्जुन बन वध कर दो।।
अंतरात्मा की शक्ति को पहचान तू,
ज्ञानमणी को मस्तक में कर धारण।
उमड़-घुमड़ रहे हैं संशय के बादल,
प्रचंड सूर्योदय कर करो अवदारण।।
तुम्हारी सोच पर निर्भर है कामयाबी,
जीत की माला जप जीत-जीत सोचो।
तूलिका कुदाल से धीरे प्रहार करके,
यदि प्यासा हो तो स्वयं कुआं खोदो।।
तेरी मंजिल महबूबा तुझे पुकार रही है,
तिमिर के स्वप्न छोड़ नींद से अब जाग।
नयी उम्मीद और नया उत्साह के साथ,
नित कर्म कर लक्ष्य की ओर अब भाग।।
– अशोक कुमार यादव, मुंगेली, छत्तीसगढ़