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गीत – जसवीर सिंह हलधर

पर्वतों की चोटियों से आग बरसाने खड़े हैं ।

नीर की नदियां बहाने रेगजारों से लड़े हैं ।।

 

सिंधु के तूफान जिनके हौसलों से हार जाते ।

चीर कर तूफान का सीना निकल जो पार जाते ।

रात काली भी कभी क्या राह इनकी रोक पाई,

काल के भी भाल पर वो मौत बनकर के अड़े हैं ।।

पर्वतों की चोटियों से आग बरसाने खड़े हैं ।।1

 

सर पटकने को खड़ी वीरान पत्थर की शिलाएं ।

और ऊपर और ऊपर शैल की ऊंची शिखाएं ।

आचरण है देश रक्षा कर्म से मन से वचन से ,

वीरता के लेख उनके होसलों से रो पड़े हैं ।।

पर्वतों की चोटियों से आग बरसाने खड़े हैं ।।2

 

दीन दुनिया का पता ना देश सेवा के अलावा ।

तीन रंगों का जनेऊ तीन रंगों का कलावा ।

रेत के तूफान हों बर्फ की तीखी हवाएं,

पत्थरों के बीच मानो लोह के मानव जड़े है ।।

पर्वतों की चोटियों से आग बरसाने खड़े हैं ।।3

 

जाट सिख या राजपूताना कुमाऊं गोरखा हों ।

या मराठे या असम, गढ़वाल के सच्चे सखा हों ।

काम सबका एक”हलधर “देश की अस्मत बचाना ,

भारती की फ़ौज के तो कारनामे ही बड़े हैं ।।

पर्वतों की चोटियों से आग बरसाने खड़े हैं ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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