नया साल
आया है आज
चला जायेगा कल
यूँ ही जैसे
होती है सुबह रोज
ढलती है शाम
औऱ आती है रात
लेके तारें अगणित
फिर क्या है नया
जो मना रहे है जश्न
सब खो के एक साथ
यूँ हो के मगन
क्या कर रहे हैं
जो नया है
अभिनव है
क्या है ऐसा जो
दे सकते है हम समाज को
जो ले जाये हमें आगे और आगे
जिसमें निहित हो
शक्तियां नव सर्जन की
निहित हो सब का कल्याण
जो धोने वाला हो मैल
मन की
मिटाने वाला हो फासले
दिलों के
जो बढ़ाने वाला हो प्रीत
मिटाने वाला हो भावना वैर की
उडा दे जो गर्द जमीं है
जो रिश्तों पर
आ जाये उनमें फिर से
वो मिठास, वो रवानी
जो छुड़ाए कुरीतियां
समाज की
बढ़ाये भाई चारा देश में
जो तोड़ दे बंधन
जात पांत के
जो मिटा दे भेद देश धर्म का
सीखा दे पाठ भ्रातृ भाव का
जहाँ पट जाए खाई
गरीबी और अमीरी की
जहाँ पानी पिये सब
एक ही घाट का
जहां मिटे अंधेरा अज्ञानता का
ज्ञान की फिर इक लौ जले
जो नया है उसे ग्रहण करें
औऱ जो पुराना है
उससे शिक्षा लें
छोड़ कर भावना तेरी मेरी
‘हम’ का भाव एक साथ चले
बचना सीखें बुराइयों से हम
अच्छाई ग्रहण करते चलें
फिर जो सुबह होगी वो
शिव होगी, सुन्दर होगी
सार्थक होगा फिर अपना
नव वर्ष मनाना।।
– अनूप सैनी ‘बेबाक़’,,झुंझुनूं, राजस्थान