खिले हैं फूल बासंती, फ़िजा का रंग प्यारा है,
लगे धरती मुहब्बत में, बड़ा दिलकश नज़ारा है।
कई परतें छुपाई थी, खुशी की वो कली कोमल,
खिली जब वो कहा सब ने, उसे किसने सँवारा है।
कभी सिहरन, कभी उलझन, अजब है ढंग मौसम का,
निकलती ठंड चकमा दे, सभी ने जब नकारा है।
गुलाबों की महक बिखरी, चढ़ी सब पर खुमारी है,
गुलाबी रंग गालों पर, असर इसका करारा है।
पतंगों पर लगी बाज़ी, उड़ानों का अभी मौसम,
कभी जो कट गयी डोरी, नहीं कोई सहारा है।
– शिप्रा सैनी (मौर्या), जमशेदपुर