मनोरंजन

गजल – ऋतु ऋतंभरा

सोया  हुआ  जमीर जगेगा  बताईये।

समझो कीमत जमीर की बचेगा बताईये।

 

महनत करे तो लोग जमीं को छु पायेगे।

होगा न कोइ डर वो तो बढेगा बताइये।

 

नाराज हो रहे हालत देख जमाने की।

वो लूटते हैं खास को मरेगा,बताइये।

 

नखरे हैं आज घर में बिना बात के अरे।

कैसे ये घर भी  आज चलेगा बताइये।

 

तू डूब जा जुनून की हद से जमाने मे।

आखिर जुनून किस की सुनेगा बताइये।

-ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, चंडीगढ़

Related posts

नाश की जड़ नशा – शोभा नौटियाल

newsadmin

सिमरा विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस पर हुआ विशेष आयोजन : कुमार संदीप

newsadmin

ग़ज़ल – विनोद निराश

newsadmin

Leave a Comment