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गीत – जसवीर सिंह हलधर

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसोटी हलधर की ।

भाव गिरे मंडी के भारी मूल न लौटी हलधर की ।।

 

इधर उधर से कर्जा लेकर बड़े जतन से फ़सल उगाई ।

धरती के सीने को चीरा देखभाल की करी गुड़ाई ।

लेकिन कर्ज़े के वारों ने छीनी रोटी हलधर की ।।

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसोटी हलधर की ।।1

 

सात दशक की आज़ादी में सोचो उसने क्या पाया ।

अपना बेटा दिया फौज़ को वापस अस्थि कलश आया ।

अब तक सारी सरकारों ने काटी चोटी हलधर की ।।

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसौटी हलधर की ।।2

 

आज़ादी मांगी थी उसने केवल भूख गरीबी से ।

सदियों से जिसको देखा है उसने बहुत करीबी से ।

अब तक पूरे हुए न सपने किस्मत खोटी हलधर की ।।

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसोटी हलधर की ।।3

 

दो धोती भी नहीं पास में लाज बचाने लाजो पर ।

लाखों के पर्दे लटके संसद खिड़की दरवाजों पर ।

पर्दे नहीं ध्यान से देखो फटी लंगोटी हलधर की ।।

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसोटी हलधर की ।।4

 

खेती कानूनों को क्यों सड़कों पर कोसा जाता है ।

राज भवन की थाली में क्यों मांस परोसा जाता है ।

मांस नहीं इनकी थाली में बोटी बोटी हलधर की ।।

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसोटी हलधर की ।।5

 

अब भी समय सँभल जाएं तो बात न आगे बढ़ पाये।

ऐसा ना हो दिल्ली की सडकों पर ये हल चढ़ जाये।

संशोधन कर मानो बातें छोटी मोटी हलधर की ।।

मंडी के साहूकारों ने ख़ाल खसोटी हलधर की ।।6

-जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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