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गजल — मधु शुक्ला

प्रीत का सागर मनोहर फाग हूँ मैं,

माँ, पिता की जिंदगी का राग हूँ मैं।

 

छाँव से अपनी हृदय जो तृप्त कर दे,

नेह से पोषित सलोना बाग हूँ मैं ।

 

जिंदगी को स्वच्छ पावन रख रहा जो,

मन समुदंर का उफनता झाग हूँ मैं ।

 

कर रहा कर्तव्य पूरे साधनों बिन,

लोक निंदा से घिरा बेदाग हूँ मैं।

 

झूठ से यारी नहीं ‘मधु’ ने निभायी,

बोलती सच इसलिए ही काग हूँ मैं।

— मधु शुक्ला. सतना, मध्यप्रदेश .

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