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हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

कुछ देश के कानून में तरदीद की गई,

थोड़ी सही पर अम्न की उम्मीद की गई ।

 

पहले तो बोलने की इजाज़त न थी जिन्हें ,

आवाज उनकी गौर से तजदीद की गई ।

 

घर के चराग काम से बेनूर से दिखे ,

कहने लगे कि कौम से ताईद की गई ।

 

लटके हुए थे लोग कुछ मज़हब सलीब पर,

उन बे सहारों के लिए तम्हीद की गई ।

 

जो ज़ुल्म मानते हैं ठीक एहतिमाद को,

सरकार से उनके लिए ताकीद की गई ।

 

अहले वफ़ा जो मुल्क के हैं मुल्क में रहें ,

कानून में कुछ खासियत मुर्शीद की गई ।

 

आगे बढ़े समाज तरक्की की राह पर,

आबोहवा यूं मुल्क की खुर्शीद की गई ।

 

“हलधर” ग़ज़ल कही है किसी खास प्रश्न पर ,

दुष्यंत वाली राह आज दीद की गई ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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