कुछ देश के कानून में तरदीद की गई,
थोड़ी सही पर अम्न की उम्मीद की गई ।
पहले तो बोलने की इजाज़त न थी जिन्हें ,
आवाज उनकी गौर से तजदीद की गई ।
घर के चराग काम से बेनूर से दिखे ,
कहने लगे कि कौम से ताईद की गई ।
लटके हुए थे लोग कुछ मज़हब सलीब पर,
उन बे सहारों के लिए तम्हीद की गई ।
जो ज़ुल्म मानते हैं ठीक एहतिमाद को,
सरकार से उनके लिए ताकीद की गई ।
अहले वफ़ा जो मुल्क के हैं मुल्क में रहें ,
कानून में कुछ खासियत मुर्शीद की गई ।
आगे बढ़े समाज तरक्की की राह पर,
आबोहवा यूं मुल्क की खुर्शीद की गई ।
“हलधर” ग़ज़ल कही है किसी खास प्रश्न पर ,
दुष्यंत वाली राह आज दीद की गई ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून