धार में पतवार अटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ ,
सिंधु ने ही नाव सटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
जाल में ऐसे फसे हैं आज तक वो कट पाया ,
शीश पर तलवार लटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
काँच जैसे जड़ गए हम पत्थरों की चौखटों में ,
देह यह सौ बार चटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
बोझ हम लादे रहे हैं मौन व्रत धारण किए है ,
राज की फोड़ी न मटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
हम जिसे पूजा किए माना हमारा देवता है ,
बात उसकी आज खटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
भ्रात हम कहते रहे हैं आज तक जिन ढोंगियों को ,
वो लगाते दाब पटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
आग सड़कों पर लगाते घूमती हैं कुछ जमातें ,
देश की आवाम भटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
गम भुलाने के बहाने पी रहा क्यों रोज” हलधर ” ,
रात दारू खूब गटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून