जानबूझ कर गलती करता, मानव बाज न आता है।
सर्व प्रदूषण से हम सबका, अतिशय गहरा नाता है।
पहले तो खुद गलती करता, फिर सब घुट-घट कर जीते,
स्वच्छ हवा अब होती दूभर, ढीठ नहीं पछताता है।
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मानव की जीवन शैली का इससे रिश्ता है गहरा।
अंध प्रगति ने स्वाँस-स्वाँस पर, लगा दिया घातक पहरा।
जला पराली नित खेतों में, ठेंगा नित्य दिखाते हैं,
आदेशों का ध्यान न रखता, जैसे हो अंधा बहरा।
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पैदल चलना भूल गए हम, वाहन पर सब चलते हैं।
पैदल चलने वाले अब तो, रह-रह आँखें मलते हैं।
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था, लचर हुई है शहरों में,
तरह-तरह के वादे करके, शासक सबको छलते हैं।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश