मनोरंजन

दोहा गजल – अनिरुद्ध कुमार

 

वाणी मधुरिम बोलिये, दुनिया लेगी नाम।

जीवन संयम से चले, गैरों का क्या काम।

 

ज्ञान धरोहर काम का, हितकर इसको मान,

मौके पर उपयोगिता, झट मिलता अंजाम।

 

व्यस्त रहो निज काम में, काहे हो हैरान,

सत्य इसे ही जान लो, कर्मठता का दाम।

 

सागर सा चंचल बनो, होठो पर मुस्कान,

धरती सी गम्भीरता, नाहक ना आराम।

 

क्षमाशील गुणी बनो, जग में हो पहचान,

अग्नि नुमा प्रदिप्त रहो, सुंदर यह पैगाम।

 

जल से घुलना सीख ले, जग सारा अंजान।

अंजाना क्या जिंदगी, जीवन तो संग्राम।

 

रूप निरेखे लोग सब, ‘अनि, कैसा इंसान।

उदय अस्त ये सिलसिला, स्वार्थ निहित प्रणाम।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह,, धनबाद, झारखंड।

Related posts

कविता (खिसियानी बिल्ली) – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

निगाहों में बात होगी – ज्योत्स्ना जोशी

newsadmin

कवितायें – सवर्णजीत सवी

newsadmin

Leave a Comment