खुद से मिलने के लिए, थोड़ा तो वक्त उधार लो,
खोट कोई मिल जाए, तो उसको तुम सुधार लो।
खुद से यही पूछो, कमजोर हुआ क्यों मेरा दिल.
माफी मांगना और देना, क्यों लगता है मुश्किल।
रख लिया जिसे अपने, जीवन का अंग बनाकर,
लेकिन उनसे ही क्यों मैं, रखता हूं राज छुपाकर।
वाणी से कह दिए थे, कुछ वादे निभाने के लिए,
सब झूठ बोला था मैंने, कुछ लाभ पाने के लिए।
मतलब निकलते ही कैसे, बदल गया मेरा इरादा,
क्या हुआ था मुझे, जो याद ना आया कोई वादा।
मेरे जहन के अन्दर, नुक्सों का ढ़ेर नजर आता,
लाख यत्न करके उनको, बदल नहीं क्यों पाता।
सबका विश्वास जीत लूं, ये विचार कब जागेगा,
छल कपट का संस्कार, कब जीवन से भागेगा।
कुछ पल शांत होकर सुनी, अंतर्मन की आवाज,
अपने पाप कर्मों से हुआ, पूरी सख्ती से नाराज।
स्नेह विश्वास का मोल, आखिर मैंने जान लिया,
सुखी जीवन का आधार, पूरा ही पहचान लिया।
मेरी बुद्धि कभी ना जाए, स्वार्थ सिद्धि की ओर,
सद्गुण धारण कर लाऊंगा, नवजीवन की भोर।
होने ना दूंगा अपने, अनमोल जीवन को बर्बाद,
जीवन श्रेष्ठ बनाकर, पाऊंगा प्रभु से आशीर्वाद।
– मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान
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