जिंदगी भी हार बैठी, जिंदगी के जंगमें।
कौन पूछे हो रहा क्या, आदमी के संगमें।
देख आया दौर कैसा, फायदा हीं कायदा
तौर दुनिया भूल बैठी, खुदखुशी के भंग में
हाल है बेहाल देखो, कौन जो दुखड़ा सुने
आह रुसवाई छुपी है, सादगी के ढ़ंग में
चालमें मगरूरियत, रो रही इंसानियत
रातदिन देखो नहाये, मयकशी के गंग में
बेवफाई तौर इनका,’अनि’ पुकारे हरघड़ी
चलपड़े अंजान रस्ते, बेकसी के रंग में
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड