मैं तो नहीं हिला पाया , कविता दीवार हिलाएगी ।
मैं तो नहीं दिला पाया ,कविता अधिकार दिलाएगी ।।
बटवारे की उस आंधी में कई घरौंदे टूट गए ।
जिन्ना नेहरू के झगड़े में कच्चे बर्तन फूट गए ।
मेले में भटके होते तो अब तक वापिस आ जाते ।
साथ साथ पानी पीते हम साथ साथ खाना खाते ।
मैं तो नहीं मिला पाया , कविता उस पार मिलायेगी ।।
मैं तो नहीं दिला पाया ,कविता अधिकार दिलाएगी ।।1
बटवारे की अनगिन लाशें किसकी कारस्तानी थी ।
सिसक सिसक कर बच्चे रोये वो किसकी हैवानी थी ।
बापू के तीनों बंदर ही मकसद अपना भूल गए ।
भूख गरीबी को झुठलाकर मज़हब के स्कूल गए ।
मैं तो नहीं पिला पाया, कविता रसधार पिलाएगी ।।
मैं तो नहीं दिला पाया ,कविता अधिकार दिलाएगी ।।2
मेरे गीत पास आयें तो उन्हें सहारा दे देना ।
लहरों में बहते छंदों को एक किनारा दे देना ।
जाति धर्म के दल्ले तुम पर दाग लगाने आएंगे ।
बीच बीच में कई मुसाफिर आग लगाने आएंगे ।
मैं तो नहीं जिला पाया, कविता संसार जिलाएगी ।।
मैं तो नहीं दिला पाया ,कविता अधिकार दिलाएगी ।।3
धर्म आड़ में बना राष्ट्र जो अब उसको मिटना होगा ।
पूरा पाक भले ना आये गिलगिट को हटाना होगा ।
काश्मीर का बच्चा बच्चा भारत की जय बोलेगा ।
सिंध प्रांत भी अपना रस्ता धीरे धीरे खोलेगा ।
मैं तो नहीं खिला पाया , कविता गुलनार खिलाएगी ।।
मैं तो नहीं दिला पाया ,कविता अधिकार दिलाएगी ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून