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चाँद सा रूप तेरा – अनुराधा पांडेय

आज दर्पण निहारूं तभी वल्लभम् !

चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम……

संग हो चिर अटल मैं बनी पिय व्रती ।

सब निभाती वचन जो विहित सतपदी।

चाँदनी में नहा धार लूँ  आभरण ।

घोल परिमल तेरा मैं करूँ आचमन ।

व्रत करूँ  माँग लूँ मैं अजर जीवनी…

हाथ में हाथ तेरा रहे शत जनम।

चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम…….

योग इससे बड़ा तप कहो ! क्या करूँ ।

नाम तेरे सिवा जप कहो ! क्या करूँ।

प्राण तन धन सकल मैं विसर्जित करूँ।

नेह घट उर तुझे सब समर्पित करूँ।

पुष्प उर से करूँ मैं सतत अर्चना …

कर्म इससे बड़ा भी कहो ! क्या धरम?

चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम……..

मूर्त राधा बनी मैं चरम प्रीत हूँ।

कृष्ण गाए जिसे वो अमर गीत हूँ।

आज छू लो अधर गुनगुना लो मुझे ।

गीत रंजित हृदय का सुना लो मुझे।

चौथ का व्रत शुचित यह प्रणय साधना….

राधिका में अचल हो निहित मोहनम्।

चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम…….

– अनुराधा पाण्डेय . नई दिल्ली

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