आज दर्पण निहारूं तभी वल्लभम् !
चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम……
संग हो चिर अटल मैं बनी पिय व्रती ।
सब निभाती वचन जो विहित सतपदी।
चाँदनी में नहा धार लूँ आभरण ।
घोल परिमल तेरा मैं करूँ आचमन ।
व्रत करूँ माँग लूँ मैं अजर जीवनी…
हाथ में हाथ तेरा रहे शत जनम।
चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम…….
योग इससे बड़ा तप कहो ! क्या करूँ ।
नाम तेरे सिवा जप कहो ! क्या करूँ।
प्राण तन धन सकल मैं विसर्जित करूँ।
नेह घट उर तुझे सब समर्पित करूँ।
पुष्प उर से करूँ मैं सतत अर्चना …
कर्म इससे बड़ा भी कहो ! क्या धरम?
चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम……..
मूर्त राधा बनी मैं चरम प्रीत हूँ।
कृष्ण गाए जिसे वो अमर गीत हूँ।
आज छू लो अधर गुनगुना लो मुझे ।
गीत रंजित हृदय का सुना लो मुझे।
चौथ का व्रत शुचित यह प्रणय साधना….
राधिका में अचल हो निहित मोहनम्।
चाँद सा रूप तेरा प्रकट हो प्रथम…….
– अनुराधा पाण्डेय . नई दिल्ली