रवि की बहुरंगी किरण,
वसुधा को करती चमन,
जब फूले पुष्प कलियां झूमें,
भौंरे अनुराग से कुसुम को चूमे।
सुंगंधित बहता है पवन,
हो जाता है मयूर ये मन,
किलकारियां करती बच्चों की टोली,
काक बोल रहा है अपनी बोली।
आम्र कुंज में कोयल का बसेरा,
कूँ-कूँ करती हुआ है सबेरा,
खेतों में बैलें हल को खींचे,
किसान तरुवर की क्यारी सींचे।
फसलों की सुंगधित बाली,
रामू काका करता रखवाली,
श्यामल घन बरसात बुलाते,
मौसम आते, मौसम जाते।
समीर सिंह राठौड़, बंशीपुर, बांका, बिहार