हे बापू,
दोनों हाथ जोड़कर,
करता हूं नमन ।
करता हूं फरियाद ।
बापू !
तेरी धुंधली होती,
छवि के साथ ।
गोल चश्मा, तीन बंदर,
अंतिम शब्द ,
” हे राम “हैं याद ।
बस अब,
उसी को उलटा टांगकर,
करते हम,
आप से फरियाद ।
गोल चश्मे को,
उलटा रखकर ।
चला दिया ,
स्वच्छता अभियान ।
पोष्टर,गाजे बाजे के साथ,
दिन रात देते बयान ।
पर थुक कर सड़क पर,
महसूस करते अभिमान ।
नहीं ला पा रहें,
कूडा उठाने वाले के,
जीवन में सम्मान ।
चल रहा,
स्वच्छता अभियान ।
तीन बंदर संग थे,
तीन वचन,
“बुरा मत बोलो,
बुरा मत सुनो,
बुरा मत देखो ”
यह सब रख दिये,
बांध कर गठरी में ।
अपने बाहुबल का,
ड़र दिखाकर।
ना जाने कितने,
प्रतिबंधित शब्द,
जाते सुनाकर ।
सुनते हैं चुपचाप,
रिश्वत की लाचारी से
कानून की मजबूरी से ।
बुरा बोलना,
बन गयी हैं शान ।
ना सुनो बुरी बोली ।
चल जाती ,
बंदूक की गोली ।
बंद कर देते बोली ।
राम का नाम लेकर,
बजते हैं नगाडे ।
आज भी हैं हम,
उलटे हुए घडे ।
विश्व गुरु बनने की,
करते तो हैं बात ।
लेकिन,
भूत की कहानियाँ,
मंदिर के घंटे,
बाबर की मस्जिद,
राम का मंदिर ।
नही देते साथ ।
बस,
यही हैं फरियाद ।
✍प्रदीप सहारे, नागपुर , महाराष्ट्र