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कविता (चेतावनी)- जसवीर सिंह हलधर

अपने सिर पर अब पाप नहीं ढोएंगे ।

अरि के शोणित से ही कलंक धोएंगे ।।

 

बासठ की  यादों  में  वो  फूल  रहा है ।

सड्सठ की चोटों को जो भूल  रहा  है ।।

 

वो जिनपिंग हमको क्या समझे बैठा है ।

नापाक  पड़ौसी  को  फुसला  ऐंठा  है ।।

 

शोणित भारत का पिघला लोह तरल है ।

छू  भी मत लेना  बहती  हुई अनल है ।।

 

ठंडा करना बासठ का क्रोध प्रजा  का ।

ड्रैगन  को समझा देंगे  धर्म ध्वजा का ।।

 

खोई  निष्ठा  अब  दुनिया  में  पाने को ।

भारत अब दौड़ रहा आगे आने को ।।

 

चीनी चूहों के  दंत  बड़े  घातक हैं ।

घर में भी तो गद्दार खड़े पातक हैं ।।

 

कुछ ढोंगी मजहब की आयत पढ़ते हैं ।

जो रोज धर्म  के नए  नियम गढ़ते हैं ।।

 

भाई चारे की नीति न जिनको प्यारी  ।

वो  कम्युनिस्ट चीनी  हैं अत्याचारी ।।

 

कुछ  नेता  इनके  पैरोकार  बने  हैं ।

जिनके पद कीचड़ में कर खून सने है ।।

 

जो इनको अपना मित्र कहा करते हैं ।

मुँह से विष वाण विचित्र बहा करते हैं ।।

 

विघटन की बातें करती कंगालिन को ।

ढाका जा समझा  देंगे बंगालिन को ।।

 

नेपाल नहीं माना तो पछताएगा ।

तिब्बत की भांति चीन उसको खायेगा ।।

 

पी ओ के लेने की पूरी तैयारी ।

नापाक फौज हमले से पहले हारी ।।

 

जो भी भारत का चलता रथ रोकेगा ।

भारत उसको घर में घुस कर ठोकेगा ।।

 

हलधर”कविता अंगारा है सच मानों ।

घर में  बैठे दुश्मन को भी  पहचानो ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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