मेरा इस तन्हाई से अटूट नाता है,
भीड़ हो या फुर्सत इससे जुड़ जाता है।
ढूंढती है आज भी ये किसी को नज़र,
जानना चाहती हूं आज उसकी खबर।
जिंदगी में आज भी कुछ कशिश है दिल में,
क्यूँ आज भी कमी है इस जिंदगी में।
आज भी क्या कुछ एहसास दबा सा है,
शायद मन में कोई अक्स बसा सा है।
उम्र के साथ-साथ हम आगे बढ़ रहे है,
पर आज भी कुछ पल पीछे खींच रहे है।
चाहत है आज भी फिर से जीने की,
इन जख्मों को फिर खुशियों से सीने की।
झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड