1
आई तिथि शुभ चौथ की, गणपति आये द्वार।
दिव्य रूप सुन्दर सजे, गल पुष्पों के हार।।
2
ऋद्धि-सिद्धि दाता तुम्हीं, हे गणपति गणराज।
प्रथम पूज्य तुम सर्वदा, करते पूरण काज।।
3
विघ्न विनाशक हे प्रभू, गौरी नन्दन लाल।
चमक रहा सिन्दूर से, भव्य अलौकिक भाल।।
4
बप्पा प्यारे आ गये, लगते वंदनवार।
ढोल – नगाड़े बज रहे, सजते अनुपम द्वार।।
5
घर आँगन सब से रहे, स्वागत करते लोग।
पूजन आराधन करें, और लगाते भोग।।
6
विघ्न हरे, मंगल करे, भक्त करें गुणगान।
एकदन्त के जाप से, मिलता है सम्मान।।
7
चालीसा के पाठ से, मिटते कष्ट अपार।
बाधायें सब दूर हो, मिले विजय का हार।।
8
धूप दीप से आरती, करते भक्त सुजान।
सारा जग है पूजता, गणपति बड़े महान।।
9
जयकारे से जता, गणपति का दरबार।
बप्पा प्यारे नाम से, होता है उद्धार।।
10
वक्रतुण्ड का नाम ही, विघ्नों का है काल।
मूषक वाहन है सजे, मस्तक मुकुट विशाल।
– नीलू मेहरा, कोलकाता (प० ब०)