मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

खुद को समझाओगे कैसे?

मुझको तुम भूलाओगे कैसे?

 

चला गया छोड़के शहर तेरा,

फिर मुझको बुलाओगे कैसे?

 

लूट गई जो दुनियाँ-ए-इश्क़,

शहरे-उल्फत बसाओगे कैसे?

 

तेरी नज़र का मैं खार सही,

मुझसे दामन छुड़ाओगे कैसे?

 

दो कदम जो पीछे हटा मैं ,

एक कदम बढ़ाओगे कैसे?

 

तुमको मुझसे कभी इश्क़ था,

बात ये तुम छुपाओगे  कैसे?

 

फ़ना हो गया अगरचे निराश,

रस्म-ए-वफ़ा निभाओगे कैसे?

– विनोद निराश, देहरादून

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