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गीत-(मुक्त छंद से जंग नहीं है) – जसवीऱ सिंह हलधर

छंद बद्ध कविता लिखता हूँ मुक्त छंद से जंग नहीं है ।

कविता जीवन की रस धारा कोई युद्ध प्रसंग नहीं है ।।

 

अपने दो पाँवों के नीचे कंकर पत्थर की धरती है ।

तलुओं की पपड़ी सूखी है मखमल गद्दों से डरती है ।

वातानुकूलित घर होवे ऐसी खास उमंग नहीं है ।।

कविता जीवन की रस धारा कोई युद्ध प्रसंग नहीं है !!1

 

छंद बद्धता रास न आयी ये कैसी दिखती लाचारी ।

छुप छुप के मत वार करो ये शीत युद्ध जैसी तैयारी ।

शब्दों के हम किले बनाते कोई भेद सुरंग नहीं है ।।

कविता जीवन की रस धारा कोई युद्ध प्रसंग नहीं है !!2

 

मुक्त मनुज क्या रह पाया है पहने अंतर वस्त्र लँगोटी ।

रामायण से महा काव्य भी कसे हुए हैं छंद कसौटी ।

भीतर से पोली हर लकड़ी बनती ढोल मृदंग नहीं है ।।

कविता जीवन की रस धारा कोई युद्ध प्रसंग नहीं है !!3

 

कविता भाव प्रधान नदी है ये सच तो सबने ही माना ।

भावों को छंदों में कसना मंतर लाखों साल पुराना ।

पिंगल हैं आधार छंद के काटी हुई पतंग नहीं है ।।

कविता जीवन की रस धारा कोई युद्ध प्रसंग नहीं है !!4

 

स्वप्न निराला जी ने देखा लेटिन फ्रेंच लिखा भी गाएं ।

छंद अगर बाधा होवे तो तोड़ उसे आगे  बढ जाएं ।

केवल प्रावधान यह “हलधर”स्वर संगीत तरंग नहीं है ।।

कविता जीवन की रस धारा कोई युद्ध प्रसंग नहीं है ।।5

– जसवीऱ सिंह हलधर , देहरादून

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