नन्दलाल राधा संग, झूला झूलें रे सखी,
सोहे पीताम्बर अंग, कजरी गायें रे सखी ।
ग्वाल बाल जमुना तीर, आये झूला झूलने,
लख कान्हा राधा रूप, गोपीं मोहें रे सखी ।
मन भावन सावन मास, कुहकें कोयल बाग में,
बादल देख – देख मोर, नाचें झूमें रे सखी ।
हैं हर्षित सारे वृक्ष, शीतल मोहक है पवन,
खिले खूब सुंदर फूल, उपवन महकें रे सखी।
चलो चलें गोकुल धाम, वंशी राधे की सुनें,
हम निर्मोही संसार, से मुख मोड़ें रे सखी।
– मधु शुक्ला .सतना, मध्यप्रदेश