फिजा बेसक विषैली है मगर ईमान जिन्दा है ।
घने आतंकी साये हैं मगर इन्सान जिन्दा है ।
बमों, बारूद तोपों से हमें वो क्या डराएंगे ,
खुदा का खौफ खाए वो मेरा भगवन जिन्दा है ।
कि हर पेचीदगी का हल निकलता दीन दुनियाँ में ।
मगर फितरत में तो उनकी अभी शैतान जिन्दा है ।
मेरे बस इक इशारे पर मिलेंगे खाक में जा वो ,
मगर भारत की माँटी में अभी ईमान जिन्दा है ।
जरा सी बात पर हमको दिखाते हैं छुरे ,चाकू ,
लहू बहती शिराओं में ये हिंदुस्तान जिन्दा है ।
कई मौकों पै उसने आजमा ली शक्ति हिंदू की ,
हमारी नस्ल में अब भी वही तूफान जिन्दा है ।
बसे हैं भक्त भोले के रहा है साथ मौला भी ,
सभी धर्मों की मेरे देश में पहचान जिन्दा है ।
इरादे ठीक होंगे यदि हमें तब हानि क्या होगी ,
अभी “हलधर” के मन में जीत का अरमान जिन्दा है ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून