मदहोश जो पड़े हैं उनको ज़रा हिला दे।
हर दर्दमंद दिल को ऐसी दवा पिला दे ।
बीमार लोग हैं कुछ हैवानियत के मारे ,
उनको इनाम में बस तू मौत का सिला दे।
सुर्खी लिए गुलाबी फूलों की डालियां हो ,
बूढ़े चमन में मौला ताजी हवा मिला दे ।
सहमी हुई हैं कलियां बेहोश बागवां है,
उम्मीद के दिए से इनको ज़रा जिला दे ।
आगोश में जमीं के हो चैन हर बशर को ,
अधिकार नागरिक को समता भरे दिला दे ।
सबका विकास होवे कल्याण हो सभी का ,
हर हाथ नौकरी हो वो नेक सिलसिला दे ।
आज़ाद मुल्क के हम आज़ाद हैं परिंदे ,
दुनिया जिसे सराहे परवाज़ काफिला दे ।
सबको सुकून दे दे आराम दे सभी को ,
विश्वास दे सभी को शिकवा न दे गिला दे ।
“हलधर” कही ग़ज़ल में ये भीख मांगता है ,
ये फूल सा तिरंगा दुनिया में अब खिला दे ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून