neerajtimes.com – चतुर्मास का मंगल प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के मंगलकारी दिन से प्रारंभ होता है। चतुर्मास यानी आत्म घर प्रवेश करने का दिवस। चतुर्मास यानी जीवन परिवर्तन का मौका तथा प्रत्येक दृष्टि से आनंद, प्रफुल्लता और उत्साह का मधुर सिंचन करने वाली धन्य घड़ियां। धर्म का बीजारोपण करने की ऋतु।
चतुर्मास में जोरदार बारिश आती है तब किसान आलस्य प्रमाद को दूर फेंक देते हैं। नई चेतना उत्साह के साथ खेत पहुंच जाते है और परिश्रम में लग जाते है। किसान के लिए ये चार महीने बहुत मूल्यवान होते है। इन चार महीने वो कठिन परिश्रम करे तो शेष आठ महीने उनके सुख से बीत सकते है। यदि वर्षा आने पर भी प्रमाद त्याग न करें खेत में बुवाई न हो और फसल उत्पन्न न होवे तो उसमें अपराध किसका? किसान का ही न? ये चार महीने व्यर्थ गंवा देते हैं तो पूरा वर्ष बेकार जाता है। खेत को हरा भरा रखने के लिए किसान को जागृत रहना पड़ता है। इस प्रकार जीवन भी एक खेत है धर्म-रुपी बीजारोपण का समय यानी चतुर्मास। साधु संन्यासियों का चतुर्मास प्रारंभ होते ही श्रावक श्राविकाओं के हृदय प्रफुल्लित हो उठते है। हृदय रुपी क्षेत्र में धर्म स्थापना करने के लिए संत जिनवाणी की वर्षा करते। वह हित रुपी वाणी वर्षा फलदाई कब होती है जब श्रावक उन वाणी का अमल (स्वीकार) करे तब। उसका सम्पूर्ण लाभ उठाने के लिए आलस्य प्रमाद विकथाओं के बादलों को बिखेर डालना पड़ेगा। यदि धर्म का बीजारोपण करना हो, जीवन रुपी खेत को हरा-भरा और सुशोभनीय बनाना हो तो बहुत ही सतर्क रहकर जागृत रहकर उस वाणी का लाभ लेना पड़ेगा। चौमासे के चार महीने यदि जिन वाणी के श्रवण बिना व्रत, नियम से रहित रह जाए तो समक्ष लेना कि पूरा साल व्यर्थ गया। पानी से भरे घनघोर बादल एक ही स्थान बरसते नहीं है वरन् अलग-अलग स्थान पर बरसते हैं । भ्रमर एक ही पुष्प का रसास्वादन नहीं लेता बल्कि अनेक पुष्पों का रस चुसकर आनंद से घूमता है, संत आठों महीने ग्रामानुग्राम विचरण (भ्रमण) करते हैं और चतुर्मास में एक स्थान में रहकर ज्ञान गंगा का प्रवाह बहाते हैं। भाग्यशाली आत्माएं ऐसी वीरवाड़ी का रसास्वादन कर सकते हैं। इन चार महीनों की कीमत नहीं समझी तो पूरा साल व्यर्थ ही जायेगा। चौमासे में संत संन्यासी शास्वत भाव संपत्तियों से धर्मोपदेश का बाजार खड़ा करेंगे। इस शास्वत भाव संपत्ति में दान,शील,तप और भाव आत्म उपदेशी जिन वाणी के द्वारा बेचा जायेगा।
शरीर के रोगी को जैसे डाक्टर जांच कर दर्द का निदान कर दवाई देता है तब उस रोगी को शान्तावेदनीय का उदय हुआ हो तो उसका दर्द मिट जाता है वैसे ही आत्म के दर्दों को गुरु का उपदेश सुनने से उसका भाव दर्द दूर हो जाता है और शास्वत सुखों को प्राप्त करता है। ऐसे भाव संपत्ति को ग्रहण करने हेतु बालक, युवक, प्रौढ़ और वृद्ध आदि श्रावक-श्राविकाए खूब उत्साही बनकर अपनी शक्ति अनुसार तन-मन-धन से दान शील तप- सदाचार लाखों गुना शास्वत भाव संम्पत्तियां ग्रहण कर आत्मीक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे चतुर्मास के मंगलकारी धर्म आराधना से संवर और निर्जरा करके भाव संपत्ति प्राप्त कर इस भव (जन्म) में एकावतारी बनने का सुअवसर मिला है। – टी.एस. शान्ति, मदुरै, तमिलनाडु , संपर्क -9486207829