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आँकना है आँक लो – प्रियदर्शिनी पुष्पा

आँकना है आँक लो पर,

यूँ न दिल को छेद डालो,

भर न पाओ गर ज़ख्म तो,

यूँ न पीड़ा को बढ़ाओ।

 

भाव सारे लूट कर न,

विकल वेदी पर चढ़ाओ,

दर्द के इस अग्नि पथ को,

हृदय के गहरे भँवर को,

आँकना है आँक लो पर,

यूँ न दिल को छेद डालो।

 

गीत की गहरी व्यथा ये,

मर्म सागर की जथा ये,

भाग्य के अंधे गहर की,

एक सिसकती सी कथा ये,

शब्द के इन अश्रु कण को,

घुटन के विस्तृत गगन को,

आँकना है आँक लो पर,

यूँ न दिल को छेद डालो।

 

एक विवश के राह में क्यों,

रंज का फरमान करते,

अनगिनत शूलों का बिस्तर,

सब्र पग पर तुम न धरते,

पलक की खामोशियों को,

यूँ बवंडर में न पालो,

आँकना है आँक लो पर,

यूँ न दिल को छेद डालो।

 

अश्रु बनकर शब्द सारे,

झर रहे ज्यों टूटे तारे,

ध्यान की अवांछना पा,

अनकहे संवाद हारे,

दफ़न कर मतभेद फिर से,

हिय सरोरुह सा सजालो,

आँकना है आँक लो पर,

यूँ न दिल को छेद डालो।

– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर

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