घर चलो रात बाकी नहीं है,
होश मदहोश साकी नहीं है।
डगमगाते कदम दूर मंजिल,
राह सुनसान साथी नहीं है।
मतलबी लोग अंजाम सोंचें,
मान ले बात हाँकी नहीं है।
देख दिखता नहीं डगर टेढ़ी,
रौशनी देख काफी नहीं है।
देख आकाश बेताब बादल,
दूर तक आज आँधी नहीं है।
चल चलें राह उनका भरोसा,
ख्वाहिशें और बाकी नहीं है।
इस कदर हाल बेहाल है ‘अनि’,
धड़कनें गीत गाती नहीं है।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड