मनोरंजन

चाय – जया भराडे बड़ोदकर

ये वो नही है

जो सोच तुम रहे हो,

ये वो खुराक है

जो जीवन को साँसे  दे रही हैं,

छुपी है इसमें मेरी

कविता और एक एक शब्द,

जो इसी तरह की पगडंडी

से होकर खुद-ब-खुद

बाहर आके सुकूंन मनाते है,

शायद ही ऐसा कोई पल हो

जो खुशियों का चाय मे न घुला हो,

ये अकेली नही होती कभी

साथ संगी सहेली सी,

दोस्तों के संग संग कभी

यादों की पोटली सी,

खुल खुल के बहकाती है,

ये होगी तुम्हारी दुश्मन

मेरी तो जिंदगी बन सी जाती है।

– जया भराडे बड़ोदकर

नवी मुंबई, महाराष्ट्र

Related posts

आ जा कन्हैया – अनुराधा प्रियदर्शिनी

newsadmin

गीतिका — मधु शुक्ला

newsadmin

गीत – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment