गैरों को दोष क्या दूँ मैं, साजिश अपने ही रचते हैं।
सामने तो मुँह पर राम, बगल में चाकू रखते हैं।।
गैरों को दोष क्या दूँ मैं——————-।।
हो गया हूँ मैं बहुत बर्बाद, आबाद अपनों को करने में।
हो गया जग में बहुत बदनाम, भक्ति अपनों की करने में।।
अपने ही रचकर साजिश, आँसू जीवन में भरते हैं।
सामने तो मुँह में राम, बगल में चाकू रखते हैं।।
गैरों को दोष क्या दूँ मैं——————-।।
अपना हमदर्द समझकर, मोहब्बत उससे करता था।
जमाने में सबसे ज्यादा, उसकी इज्जत करता था।।
साजिश वो मुझसे करके, महलों में अब वो रहते हैं।
सामने तो मुँह में राम, बगल में चाकू रखते हैं।।
गैरों को दोष क्या दूँ मैं——————–।।
नहीं है अब चैनो- अमन, खूनी मंजर है वतन में।
जाति- धर्मों के झगड़े अब,बहुत है अपने वतन में।।
रचकर राष्ट्रवाद की साजिश, अपने राजनीति करते हैं।
सामने तो मुँह में राम, बगल में चाकू रखते हैं।।
गैरों को दोष क्या दूँ मैं——————–।।
– गुरुदीन वर्मा आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां (राजस्थान)