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जब मुहब्बत हुई – प्रियदर्शिनी पुष्पा

जब मुहब्बत हुई उर की कलियाँ खिली,

मौन ही मौन मैं गुनगुनाने लगी,

होंठ थिर हो गये हिय सरोवर सजे,,

भावना पुष्प बन खिलखिलाने लगी।

 

जब मिले थे हमें श्वांस रुक सी गयी

नैन हो मौन तब मुस्कुराने लगे,

संग तेरा सदा यूँ ही मिलता रहे,

चाँदनी बनके मैं जगमगाने लगी।

 

चाहे हो दूरियाँ नभ धरा की तरह,

पल मिलन के सभी एक सदी सी लगी,

मेरी सुधियों में तुम यूँ रहोगे सदा,

गीतों में फिर तुम्हीं को सजाने लगी।

 

राधिका श्याम के जैसा इतिहास हो,

स्वाती बुँदों से बुझ जाए वो प्यास हो,

प्रीत माला पिरोते रहें जन्म भर,

संचरण भावना नव रचाने लगी।

 

मन प्रणय साधना में सराबोर हो,

नैन के वक्ष में प्रीत बोने लगी,

ज्ञात था भी नहीं उस विरह काल का,

एक उम्मीदों में खुद को गुमाने लगी।

 

छुप जाते कभी कभी दिखते हो ऐसे,

बादलों में छुपा हो कोई चाँद जैसे,

प्रश्न बौछार है ज्ञात उत्तर नहीं,

शब्द में त्याग की उपमा छाने लगी।

– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर

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