तन्हा हूँ किसी को कहना नही है।
वक्त की आँधी को सहना नही है।
क्यो कर जलते है लोग इक दूजे से।
सोच लिया इनके संग रहना नही है।
हालात कितने भी पशेमान कर दे।
सोहबत मे इनके अब बहना नही है।
बदल गया सब कुछ इस संसार मे।
कौन कब संग रहा, कहना नही है।
घबराकर इन हालातो से अब ऋतु
कहाँ डुबूँ कि दिल मे चैना नही है।।
– रीतूगलाटी ऋतंभरा, मोहाली