neerajtimes.com बुलंदशहर (उ प्र)- आज हिन्दी प्रचारिणी सभा किसी परिचय की मोहताज नहीं है । देश के ज्यादातर हिस्सों के हिन्दी सेवी, साहित्य मनीषी, वरिष्ठ विद्वतजन, या अन्य किसी भी प्रकार या साधन से हिन्दी के प्रचार – प्रसार में जुटे साधकों का यह मंच उत्तरोत्तर विकास के पथ पर नये सौपानों को वरण कर रहा है। मगर हमारा यह प्रयास तभी पूर्णत:परवान चढ़ पायेगा जब हम सब हिन्दी के इस महायज्ञ में अपनी- अपनी आहुति पूर्ण मनोयोग से समर्पित करें । आजादी के बाद मातृभाषा का तगमा हासिल करने के पश्चात् भी , स्वतंत्रता के इतने वर्षों से यह अपने अस्तित्व के लिये ही जूझ रही है । आखिर ऐसा क्यों है ? क्या हम सब भी इस त्रासदी के लिये जिम्मेदार है ? जी हाॅ कुछ – कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है । अंग्रेजों की गुलामी से तो हमने आजादी प्राप्त कर ली , मगर उनकी भाषा ने हमारे दिल और दिमागों को अपना गुलाम बना लिया है। हम और हमारा समाज आज अंग्रेजी पढ़ने – लिखने में गर्व महसूस करता है । अंग्रेजी से परहेज़ करने वालों को जाहिल और गंवारों की श्रेणी में रखा जाता है, उन्हे हेय दृष्टि से देख जाता है। अंग्रेजी को दिन – प्रतिदिन के व्यवहार में प्रयोग करने वालों की श्रेष्ठता की श्रेणी में गिनती होती है। यह सब इसी कारण हो रहा है कि हमने अपनी मानसिकता भी इसी प्रकार की बना रखी है।अपनी मातृभाषा के साथ परायों जैसा यह व्यवहार कहाॅ तक उचित है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है । कहते हैं कि जीवन मे अगर कुछ अच्छा करना हो तो उसकी शुरुआत हमें स्वंय से ही करनी चाहिये तभी वह अपने अंजाम तक पहुॅच पायेगा । मात्र भाषणों से , धरना- प्रदर्शनों या प्रेस विज्ञप्तियां जारी कर देने से हिन्दी का कुछ भी भला होने वाला नहीं है । हम बदलेगें युग बदलेगा वाले मंत्र पर अमल करते हुए आइये हम सब देशवासी आज यह प्रण धारण करें कि भविष्य में हम सभी अपने प्रतिदिन के कार्य व्यवहार में हिन्दी का ही प्रयोग करेगें, अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी में करने के स्थान पर हिन्दी में ही करेंगें व अपने आस- पास के लोगों को ऐसा करने के लिये प्रेरित करेगें। तथा ज्यादा से ज्यादा हिन्दी के शुद्ध शब्दों का ही प्रयोग करने का प्रयास करेगें। दुकानदारों व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के मालिकों को उनकी दुकानों के बाहर लगने वाले बोर्डों और इश्तहारों पर हिन्दी का प्रयोग करने के लिये प्रेरित कर उन्हें भी अपनी मुहिम में सम्मलित करने का प्रयास करेगें। कभी- कभी छोटे-छोटे बदलाव बड़े – बडे़ बदलावों का सबब बनते हैं,
-डॉ हरेन्द्र हर्ष, मार्गदर्शक व सचेतक, प्रेरणा हिंदी प्रचारणी सभा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश , संपर्क -९७५९९८८५१६