आया रे आया रे ।
घिर घिर कर शोर मचाया रे।
हम सब को भीगया रे।
गर्मी को भगाया रे।
दूर दूर से आता रे,
दूर दूर तक जाता रे,
बिना पूछ के आता रे।
बिना बोल के जाता रे।
आनंद से कोयल गाता रे।
पुलकित मोर नाचता रे।
पेड-पौधे ख़ुशी से हिलाते रे।
पशु-पक्षी आनंद से भागते रे।
बूंद बूंद से नदिया भरते रे,
अन्नदाता को आनंद लाते रे।
आसमान में इन्द्रदनुष छाया रे।
उसे देख के बच्चे नाचते रे।
कभी कभी अतिवृष्टि होते रे।
कभी कभी अनावृष्टि होते रे।
ठंडी हवा को लाता रे।
गर्मी से मुक्ति दिलाता रे।
आप नही तो, हम नही,
इसके लिए तू आता रे,
– जि. विजय कुमार, हैदराबाद, तेलंगाना