neerajtimes.com- ये लिव -इन रिलेशनशिप होता क्या है? ये जो पाश्चात्य सभ्यता का एक बिचार है, वो आजकल हमारे हिंदुस्तान में भी बहुत प्रचालित हो रहा है। आज की पीढी इस आधुनिकता में इस लिव-इन रिलेशनशिप को बहुत अधिक महत्व दे रही है। अब बात ये आती है कि आखिर ये लिव-इन रिलेशनशिप होता क्या है। शादी से पहले लड़के और लड़की का पति-पत्नी की तरह साथ रहना यही लिव-इन रिलेशनशिप है।
हमारे हिंदुस्तान में जहाँ एक दौर ये था कि जब विवाह के समय लड़के -लड़की एक दूसरे को देखते भी नही थे और घर वाले ही विवाह तय कर देते थे।
फिर प्रेम-विवाह का चलन आया इसमें भी सहमति से रिश्ते जीवन भर चलते थे। एक बात जो विवाह के समय सिर्फ लड़कियो के लिये होती थी और हर माँ- बाप लड़की को विदाई के समय ये जरुर कहता था कि “बेटी डोली में जा रही हो ससुराल और अर्थी में ही विदा होना अपनी ससुराल से।”
कहने का तात्पर्य ये है कि ससुराल या तेरा पति कैसा भी हो तुझे हर हाल में उसे निभाना है, लेकिन आज के समय में “तलाक” जैसा भी विधान है कि जब विचार नहीं मिले तो अलग होके स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जी सकते है, मगर आज के समय में आज की पीढ़ी का मानना है कि हम अरेंज मैरिज नही करेंगे। जिसको जानते ही नही उसके साथ पूरा जीवन कैसे व्यतित कर कर सकते है? इसलिये लिव-इन रिलेशनशिप में रहकर एक-दूसरे के विचारों को जान पायेंगे और अगर लगेगा कि विचार आपस में नही मिल रहे तो एक दूसरे को टाटा, ,बॉय-बॉय कर देंगे। फिर जीवन में किसी दूसरे को ढूँढेगे और जब तक सही विचारों वाला साथी मिल नही जाता यही करते रहेंगे। इससे वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी नही आयेगी और वो ये भी चाहते है कि उनके माता-पिता व घर वाले भी उनका साथ दे।
बार-बार साथी बदलते हुए लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे क्या ये सही है? कही एक-दूसरे का इस्तेमाल तो नही कर रहे? कोई भी रिश्ता हो, वो भावनाओं से जुड़ता है।जब तक भावनाएँ ना हो तब तक जुड़ ही नही सकते। ऐसे में कभी लड़कियाँ लड़को को अपना सब कुछ मान लेती है या लड़के भी लड़कियो को अपना सब कुछ मान लेते है और अचानक से कभी कोई एक ये आकर कह देता है कि मेरा मन अब तुमसे नही मिल रहा और रिश्ते ख़त्म हो जाते है। ऐसे में दूसरे साथी पर क्या बितती है? वो किस तरह के अवसादो में घिर जाता है। ये एक बहुत ही निराशाजनक स्थिति होती है और इसके परिणाम कभी- कभी बहुत बुरे होते है।
क्या लगता है आपको ? कही ना कही आज की पीढ़ी में आत्मविश्वास की कमी है या वो ये सोचते है कि विवाह के बन्धन में बँधकर पति-पत्नी के रूप में वो बात नही कर पायेंगे जो एक मित्र से कर सकते हैं। शायद यही बात है जो वो लिव-इन रिलेशनशिप को एक ट्रायल के रूप में लेना चाहते है।
अब प्रशन ये उठता है कि ये लिव-इन रिलेशनशिप कहाँ तक सफल है हमारे हिंदुस्तान में……..? या इसकी जरुरत है ? – झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड