अगर नहीं होती पुस्तक,
तो कैसा होता पूरा जग ।
विज्ञान का नहीं होता प्रसार,
बच्चों की पुस्तक आधार ।।
पुस्तक से जो मिलता ज्ञान,
पढ़कर मिलता सबको सम्मान।
पुस्तक पढ़ना ही नहीं सिखाती,
विवेकशील भी हमें बनाती ।।
अंधकार सब मिट जाता है,
ज्ञान की ज्योति जब जलती है।
सदाचार हम बन जाते हैं,
पुस्तक को जब हम पढ़ते है ।।
नहीं होता गर पुस्तक का ज्ञान,
होते हम तब पशु समान ।
समय बिताने का है माध्यम,
संवेदना से होती आंखे नम।।
– ममता जोशी “स्नेहा”
सुजड़ गांव, टिहरी गढ़वाल