रहता सदा भविष्य कोख में , ये चिंता का मूल ।
वर्तमान में चुभन बढ़ाता , भूत काल का शूल ।।
दिनचर्या को बांधे रखता , है अतीत का सूत ।
दिन दूना बढ़ता जाता ये , दिखे रात में भूत ।
जाने से पहले कर लेता , अपना जुर्म कुबूल ।।
वर्तमान में चुभन बढ़ाता , भूत काल का शूल ।।1
इक पल में आरंभ समाया , दूजे पल में अंत ।
चाल समय की ना पहचाने , ज्ञानी ध्यानी संत ।
कभी खार सा दिखे नुकीला , कभी दिखे ये फूल ।।
वर्तमान में चुभन बढ़ाता , भूत काल का शूल ।।2
कभी कठिन है कभी सरल है ,ऐसी इसकी जात ।
सदा मनुज के साथ रहा है ,ज्यों दूल्हा बारात ।
बुरा समय आये तो भैया ,पड़े अक्ल पर धूल ।।
वर्तमान में चुभन बढ़ाता ,भूत काल का शूल ।।3
चिंता चिता समान रही है , समय निभाये साथ ।
छुटकारा दिलवाने में भी , रहा इसी का हाथ ।
समय सत्य है समय सनातन ,”हलधर ” तथ्य न भूल ।।
वर्तमान में चुभन बढ़ाता , भूत काल का शूल ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून