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गीत – जसवीर सिंह हलधर

सोने के कंगन छनन छनन ।

आयी पहने भृष्टाचारन ।।

 

छन छन कंगन झंकारों से ।

नैनों के कुटिल प्रहारों से ।।

संसद में देखो नाच रही ,

बतियाती खादी यारों से ।।

मर्यादा तार तार करके ,

गिनवाती सिक्के खनन खनन ।।1

सोने के कंगन छनन छनन —–

 

इठला कर ऐसे चलती है ।

अपना ये रूप बदलती है ।।

जब रूप दिखाए मज़हब का ,

ये संविधान को छलती है ।।

नेता बहरे हो जाते हैं ,

सुनते ना दुखियों का कृंदन ।।2

सोने के कंगन छनन छनन ——

 

अधिकारी मद में झूम रहे ।

कुत्ते कारों में घूम रहे ।।

अनपढ़ नेताजी यान चढ़े ,

जो आसमान को चूम रहे ।।

निर्धन फांसी पर झूल रहा ,

सुनता ना दंभी सिंहासन ।।3

सोने के कंगन छनन छनन ——

 

जिंदा ये सब सरकारों में ।

सोती संसद गलियारों में ।।

यह पैंठ बनाये बैठी है ,

हर दल के राजकुमारों में !

कर अट्टहास इठलाती है ,

होगा कब इसका दंभ दलन ।।4

सोने के कंगन छनन छनन ——-

 

सदियों से हमको सता रही ।

मुगलों से नाता बता रही ।।

अंग्रेजी में जहर लिए फिरती ,

ये सोचो किसकी खता रही  ।।

हलधर” का हल ही कुचलेगा ,

इस जहरीली नागिन का फन ।।

सोने के कंगन छनन छनन ——–

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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