मनोरंजन

मचने लगा बवाल – डॉ. सत्यवान सौरभ

जीवन में मुझको मिले, ऐसे लोग विचित्र ।

काँधे मेरे जो चढ़े, खींचे खुद के चित्र ।।

 

जैसी जिसकी सोच है, वैसी उसकी रीत ।

कहीं चाँद में दाग तो, कहीं चाँद से प्रीत ।।

 

ये कैसी नादानियाँ, ये कैसी है भूल।

आज काटकर मूल को, चाहें कल हम फूल।।

 

पद-पैसों की दौड़ में, कर बैठे हम भूल ।

घर-गमलों में फूल है, मगर दिलों में शूल ।।

 

जब तक था रस बांटता, होते रहे निहाल ।

खुदगर्जी थोड़ा हुआ, मचने लगा बवाल ।।

 

चूहा हल्दी गाँठ पर, फुदक रहा दिन-रात ।

आहट है ये मौत की, या कोई सौगात ।।

 

अपनों के ही दर्द का, नहीं जिन्हें आभास।

उनमें होकर भी नहीं, होने का अहसास।।

-डॉ. सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर,

हिसार (हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570

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