चकाचौंध में व्याकुल धाये,
आज बैठ के क्यों पछताये।
शजर काट के महल बनाये,
हरियाली गुम ना हो जाये।
आओ मिलके पेड़ लगायें।
लुप्त हो रही छटा निराली,
चारो तरफ तार की जाली
कंक्रीट की शोभे अटारी
बोल कहाँ अब वो हरियाली।
आओ मिलके पेड़ लगायें।
हरियाली से हो खुशहाली,
प्राणवायु दें पत्ती डाली।
बाहर भीतर वृक्ष लगाये,
रौनक लौटे पहले वाली।
आओ मिलके पेड़ लगायें।
कैसी आज हवा जहरीली,
उद्योगों की गैस नशीली।
जीवन पर बादल मडराये,
धूल धुआं से आँखें गीली।
आओ मिलके पेड़ लगायें।
क्यारी में पौधा उपजाये,
गमलों में नव फूल लगाये।
पर्यावरण स्वच्छ रहे सदा,
हम अपना कर्तव्य निभायें।
आओ मिलके पेड़ लगायें।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड